Manikarnika Movie Review : खुूूब लड़ी मर्दानी झाँसी वाली रानी, कंगना रनौत ने निभाया शानदार किरदार

Manikarnika

नई दिल्ली। ‘खूब लड़ी मर्दानी, वो तो झांसी वाली रानी थी’ सुभद्रा कुमारी चौहान की इन लाइन्स ने लक्ष्मीबाई को इतिहास के पन्नों में अमर कर दिया था। अब बारी है कंगना रनौत की, जिनके कंधों पर Manikarnika को पर्दे पर अमर करने की जिम्मेदारी है। कई विवादों के बाद Manikarnika रिपब्लिक डे से एक दिन पहले रिलीज हो गई है। अब क्या कंगना इस जिम्मेदारी को निभाने में सफल रही है या नहीं जानते हैं इस रिव्यू में…

कहानी

फिल्म Manikarnika की कहानी अमिताभ बच्चन के वॉइस ओवर के साथ शुरुआत होती है। अठारह सौ अट्ठाईस के दशक में मनु उर्फ मणिकर्णिका की हीरोइक एंट्री होती है, जहां वह अपनी अचूक तीरअंदाजी से खूंखार शेर को बेहोश कर देती है। पेशवा (सुरेश ओबेरॉय) की दत्तक बेटी Manikarnika उर्फ मनु जन्म से ही साहसी और सुंदर हैं। ऐसे में राजगुरु (कुलभूषण खरबंदा) की निगाह उन पर पड़ती है। मनु के साहस और शौर्य से प्रभावित होकर वह झांसी के राजा गंगाधर राव नावलकर (जीशू सेनगुप्ता ) से उसकी शादी करते हैं। ऐसे में मनु झांसी की रानी बनती है।

झांसी की रानी को अंग्रेजों के सामने सिर झुकाना कभी गवारा नहीं था। वह झांसी को वारिस देने पर खुश है कि अब उसके अधिकार को अंग्रेज बुरी नियत से हड़प नहीं पाएंगे। मगर घर का ही भेदी सदाशिव (मोहम्मद जीशान अयूब) षड्यंत्र रचकर पहले लक्ष्मीबाई की गोद उजाड़ता है और फिर अंग्रेजों के जरिए गद्दी छीन लेता है।

एक्टिंग
सबसे पहले बात करें कंगना रनौत की एक्टिंग की तो उनकी परफॉर्मेंस को देखकर लगता है कि झांसी की रानी लक्ष्मीबाई का रोल उन्हीं के लिए बना था। हालांकि, झलकारी बाई के रोल में अंकिता लोखंडे को ज्यादा स्क्रीन टाइम नहीं दिया गया है। लेकिन,अपनी पहली फिल्म में वह अपनी मौजूदगी दर्ज कराने में कामयाब रही हैं।

गुलाम गौस खान के रोल में डैनी की परफॉर्मेंस ये साबित करती है कि उनमें पहले जैसी धार अभी भी कायम है। वहीं, गंगाधर राव के रोल में जीशूसेन गुप्ता, पेशवा के रोल में सुरेश ओबरॉय और राजगुरु के रोल में कुलभूषण खरबंदा ने अपना रोल बखूबी निभाया है।

म्यूजिक

ऐसी फिल्मों के लिए म्यूजिक भी बहुत अहम हिस्सा होता है जो दर्शकों में भाव जगा सके. लेकिन यहां वो भी कुछ खास नहीं है. इस फिल्म के लिए साउंड ट्रैक शंकर-एहसान-लॉय ने कंपोज किया है और फिल्म के गाने प्रसून जोशी ने लिखे हैं. ‘भारत’ और ‘कब प्रतिकार करोगे’ जैसे दमदार लिरिक्स वाले गाने भी देशभक्ति से ओत प्रोत नहीं कर पाते.

कमजोर कड़ी

फिल्म के पहले हाफ के मुकाबले इसका सेकंड हाफ इसकी कमजोर कड़ी है। फिल्म में निरंतरता की कमी भी साफ नजर आ रही है। फिल्मों के दमदार डॉयलाग्स हर किसी के जहन में बस जाते है, लेकिन इस फिल्म में रानी लक्ष्मीबाई के वन लाइनर डायलॉग बहुत हल्के लगते हैं और प्रभावित नहीं करते। साथ ही फिल्म के कई सीन्स औवर ड्रामेटिक लगते है, जिन्हे देखकर लगता है आप किसी स्टेज प्ले को देख रहे है।

मणिकर्णिका में ऐसे कई मूमेंट्स हैं जो आपको स्क्रीन में बांधकर रखेंगे। वहीं, कंगना की परफॉर्मेंस देखने के लिए आप जरूर जेब ढीली करना चाहेंगा। इसके अलावा रिपब्लिक डे की छुट्टी के मौके पर अगर आप अपनी फैमिली और फ्रेंड्स के साथ फिल्म देखने का मन बना रहे हैं तो मणिकर्णिका सबसे अच्छा ऑप्शन है।

 

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